"अंतरमुखता" क्या है?
जब भी सत्संग में बैठें तो यह सोच कर की बस अब सिर्फ मैं और मेरा गुरु हैं। जो भी बात आ रही है सिर्फ मेरे लिए है, मेरे अपनी सोच, मान्यता, पुरानी सभी धारणाएं खतम होती जाएं और केवल गुरु की सोच रहे जाए। मेरा हर कदम, उठना बैठना, बोलना, चलना सब गुरु की बात से स्वचालित हो।
जब भी कोई विचलन हो तो उसका कारण बाहर ढूंढने की बजाय अपने में ढूंढें, मुझे विचलन क्यूं हुई? मेरे मन की नही हुई, मुझे कुछ कह दिया जो अच्छा नही लगा...तो अंदर से ही गुरु की बात से जवाब मिलेगा और मन शांत हो जाएगा।
मैं कहां की लाट साहिब हूं जो मेरे मन से अगला चलेगा, क्या मैं अगले के हिसाब से चल सकती हूं, अगला मेरे मन से नही कर्मों के हिसाब से चलेगा, सब चार्ट बना पड़ा है, मेरी इस में भलाई छिपी है, मेरा खुद का शरीर ही मेरे हिसाब से नही चलता। परमात्मा का खेल चल रहा है और बहुत अच्छा चल रहा है।
इस चित्र में दिए गए फूल की क्या विशेषता है? हम इससे क्या सीखते हैं?
यह कमल का फूल है जो कीचड़ में उगता है, कीचड़ से ही उसका पोषण होता है पर उससे उप्पर उठा रहता है।
हम इससे सीखते हैं कि हम संसार में निर्लेप और न्यारे होकर रहें। हम संसार से कहीं अलग होकर नही रह सकते पर मन से हम गुरु से जुड़े रहें, सबके गुणों पर नज़र हो, सब मुझको सुख पहुंचाने के लिए परमात्मा ने दिए है, सबके दिल से शुक्राने मानते चलें, पर हर पल याद रखें की इनमें अटकना नही क्योंकि उनसे हमेशा सुख और अच्छा अच्छा ही नहीं मिलेगा, वो बदलेगा भी, जब उनसे सुख मिले तो याद रहे गुरु आज तुम ही इनके घट में बैठकर आए अगर उल्टा चलें तो याद रहे कि इस रूप में परीक्षा लेने तुम ही आए, opposition में ही position बनती है, मेरी धीरजता, सहनशक्ति बढ़ती है, सत्संग की तरफ रूझान बढ़ता है
ये चातक पक्षी है? इसका मुख खुला है और उप्पर आकाश की और ही है? क्यूं? इससे गुरुजी क्या सिखाते हैं? कौनसे भजन की लाइन में इस बात का संबोधन आता है?
चातक पक्षी केवल स्वाति नक्षत्र की बूंद ही पीता है, उसी से उसकी प्यास बुझती है, वो इधर उधर के ताल तलैया का पानी नहीं पीता। हमारा मुख भी केवल गुरु की और हो, वो मेरे लिए क्या कह रहे हैं, उसी से मेरा मन शांत होता है, कहीं और सुनकर, मेरा मन शांत नहीं होगा।
गुरु महिमा है जग में बड़ी गुरु बैठे हैं अंदर में, जैसे सूरज है अम्बर में और चाँद नीलाम्बर में
जैसे स्वाति बिना चातक जैसे
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कैसे बोलें?
तोल मोल कर बोल
जब तराजू में कुछ तोलते हैं तो इस बात का ध्यान देते है की पलड़ा ऊंचा नीचा तो नही है, अच्छी छांट कर चीज डालते हैं, सड़ी गली नही। इस सब के लिए धीरज चाहिए होता है। एकदम से पलटवार नही करें, अगले को सुनें ध्यान से, सोचें और अगर जरूरत हो तो और फिर बोलें, encouraging बात, मीठी बोली।
इस चित्र में दिए गए फूल की क्या विशेषता है? हम इससे क्या सीखते हैं?
यह गुलाब का फूल है जो कांटों के साथ ही उगता है, इसको कांटों के साथ ही bouqet में भी लगाया जाता है, यह उनके बीच में रहकर भी खिला रहता है। कोई फूल को तोड़ने लगे तो कांटे उसकी रक्षा करते हैं
इससे हम सीखते हैं की जीवन में सब अच्छा ही अच्छा नही होता, आस पास प्रतिकूल, चुभने जैसी परिस्तिथियां भी हमेशा होंगी, पर यही हमारी रक्षा के लिए हैं, हमको अहंकार से बचाती हैं, हमारे मन का न होना अच्छा है नही तो हमारे दुर्गुण - लोभ, लालच, इच्छाएं और बढ़ती जाएं
फूल कांटों से भिड़ता नही है, अपने खिलने में लगा रहता है, ऐसे ही हम उल्टा चलने वालों से भिड़े नही, बहस नही करें, justify नही करें अपने को, पर अपने भावों को साफ करते जाएं
इस चित्र में सेमल का फूल और तोते का चित्र है। इससे गुरुजी ने हमको क्या बताया है और हम क्या सीखते हैं?
सेमल का फूल लाल रंग का होता है और बहुत सुंदर लगता है। इससे आकर्षित होकर, इससे रस लेने की कामना से तोता इसमें चोंच मारता है, लेकिन इसमें से रूई निकलती है। जब पता चल गया तो फिर दोबारा मुड़ कर इसपर नही आता। हम भी बाहर बहुत आकर्षित होते हैं, पर बाहर की वस्तुएं या व्यक्ति हम को हमेशा आनंद में नही रखते है, वहां से हमको हर पल का उमंग नही आता, जब sample देख लिया तो फिर बार बार उधर क्यूं जाएं
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"साधो चुप का है संसारा" इस भजन से आज हमने क्या सीखा?
पूरी प्रकति चुप में कार्य करती है। अंधेरी कोठरी में बैठकर परमात्मा शरीर को रच देता है और कोई आवाज नहीं होती, पता भी नही चलता कब आंख, नाक सब बन गया। छोटा सा बचा कैसे इतना बड़ा शरीर हो जाता है, सब पालना हो गई, अंदर खाना डाइजेस्ट होता है, पर कोई आवाज नहीं होती, और फिर सबके बीच बैठे शरीर से प्राण ले लेता है, कोई आवाज नहीं होती, पता ही नहीं चलता। परमात्मा सब कुछ करता है पर कभी नहीं कहता कि मैंने किया, हम क्यों जरा सा भी कुछ करके इतना बोलते हैं? मौन में रहें तो दीदार करेंगे, कुछ चिंतन होगा गुरु की बातों का कि सब उसकी शक्ति से हो रहा है।
इस चित्र में दिए गए फूल की क्या विशेषता है? हम इससे क्या सीखते हैं?
ये गेंदे का फूल है, यह फूल बहुत सारे छोटे छोटे फूलों से बना होता है, इसमें हर कली अपने में परिपूर्ण होती है।
हम भी परिवार में रहते है तो इस फूल की तरह हैं - हर कोई अपने में पूर्ण है, पर सबके साथ मिलजुल कर चलने से ही हम शोभायमान हैं। सबका आदर करना, हां में हां मिलाकर चलना, सबकी कदर करना, छोटा बड़ा नही पर समान भाव का आदर करना
इस चित्र में कौआ और कोयल को दिखाया गया है? इसको देखकर हमको गुरूजी की बताई कौनसी सीख याद आती है?
कोयल अपने अंडे कौए के घोंसले में रख देती है, कौआ कउई उसको अपने बच्चे समझ कर पालते रहते हैं, जब उन अंडों में से बच्चे निकलते है और वो उड़ जाते हैं, तब उनको समझ आता है कि वो तो उसके नही थी। ऐसे ही परमात्मा स्त्री का गर्भ चुनता है और उसमे अपने अंडे डाल देता है, हम उनको अपना समझ कर पालते रहते हैं, हम उन पर अपना हक जताते हैं, उनको अपने हिसाब से चलाना चाहते हैं, पार गुरु के साथ यह बात समझ आती है कि वो परमात्मा के बच्चे हैं, उसने खेल खिलोने दिए हैं कुछ समय के लिए खेलने को, केवल प्रेम करो
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शिष्य ने जब शिक्षा ले ली और घर जाने लगा तो गुरु से पूछा अब मैं क्या करूं, तो गुरु ने एक शब्द में क्या उत्तर दिया? इस शब्द के एक एक अक्षर को आज खोला गया था, वो भी बताएं।
"सावधान"
स - साफ दिल हो, कोई मैल नही, बाहर से भी साफ वस्त्र पहनें, भीतर से भी मन में कोई ईर्षा, जलन, राग, द्वेष न हो, किसी के प्रति कोई दुर्भावना न हो
व - विनम्रता हो, विशेष नम्रता का भाव हो, कोई ऐंठन न हो बोली में, चाल में, व्यवहार में, दूसरों को हुकुम में नही चलाएं, हम दूसरों के हुकुम में चलें
ध - ध्यान हो हर पल कि गुरु की समझ से मेरी रहनी हो, उठना, बैठना, बोलना, चलना, धम धम करके नही चलें, किसी को पानी का ग्लास भी दिया तो प्यार से साफ करके, एक भी बूंद न लगी हो बाहर
न : नम्रता से चलें। ऐंठन तो मुर्दे की शान है, जीवित होकर क्यूं ऐंठते हैं?
इस चित्र में दिए गए फूल की क्या विशेषता है? हम इससे क्या सीखते हैं?
यह सूरजमुखी का फूल है जिसका मुख हमेशा सूरज की तरफ ही रहता है, जैसे जैसे सूरज की दिशा बदलती है, इसका मुख उसी की तरफ होता है।
हमारा मुख भी गुरु की तरफ हो हमेशा - सत्संग में गुरु की नज़र पर नज़र हो, कहीं और नही और फिर हर पल सुजागी हो, मेरे गुरु को क्या पसंद है, मैं सुजाग रहूं हर पल। क्या मैं हर पल प्रफुल्लित हूं? शुक्रानों में हूं? क्या मेरे बोली सबको शीतलता देती है, मेरे चलने से कुछ भी कार्य करने से किसी को कष्ट तो नही पहुंचता? गुरु को dedicated हूं तो सारे लक्षण वैसे ही उभर आएंगे
नीचे दिए गए चित्र में पक्षियों के झुण्ड को देखकर हम क्या सीखते हैं?
अपने flock में रहो
हर जीव अपने flock में रहता है, पशु पक्षी सब। हम सच का सुन करें, सत्संग प्रेमियों के साथ बैठें, इससे हमारी सोच पॉजिटिव होती है, हम शांत रहते हैं, अच्छा आचरण बनता है, हम सुरक्षित रहते हैं
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हमारे २४ घंटे का division कैसे होना चाहिए?
६ घंटे परमात्मा का भजन, सत्संग, भजन बड़ना चाहिए - भजन माना सब परमात्मा का है, उसी से चल रहा है, मेरा अपना कुछ नही या सबकुछ मेरा है बस यही भाव रह जाए
६ घंटे नित नैमित्तिक कर्म जैसे नहाना, धोना, ब्रश, भोजन..
६ घंटे जीवन यापन के कार्य करना
६ घंटे निंद्रा के लिए
इस चित्र को देखकर फूल की कौनसी विशेषता याद आती है? इससे हम क्या सीखते हैं?
फूल हल्का होता है और पानी में हमेशा तैरता है, खिला रहता है और खुशबु बांटता है। ऐसे ही गुरु के वचन हमको फूल की तरह हल्का हल्का रहना सिखाते हैं, जिससे जीवन में मुस्कराहट रहती है, हम खिले रहते हैं और अपने आसपास वालों को अच्छी vibrations देते हैं।
इस चित्र में हंस को दिखाया गया है? इसको देखकर हमको गुरूजी की बताई कौनसी सीख याद आती है?
हंस की चोंच में झिल्ली होती है जिससे वो शीर और नीर को अलग कर देता है, शीर पी लेता है और नीर छोड़ देता है। इसकी तुलना विवेक से की गयी है, जितना हम गुरु के साथ बैठते हैं, इस सच को सुनते हैं, हमारा विवेक खुलता है, सत्य और असत्य की पहचान मिलती है। सत्य है परमात्मा, शक्ति और असत्य है शरीर। ये शरीर परमात्मा की शक्ति से चलता है, शरीर अपने आप में मुर्दा है, हम शरीरों को पकड़कर उसमे अटक जाते हैं, पर गुरु हमको सत्य में, शक्ति में टिकाता टिकाता है।
आपको एक गाने का क्लिप दिखाया जायेगा। आप उस गाने की दो पंक्तियाँ गायें। उससे जुड़ी ज्ञान की ऐसी कौनसी बात याद आती है जो हम को जीवन में प्रेरणा देती है?