सूत्र
वचन
भक्त
भजन
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नीचे दिए चित्र से गुरुजी की कौनसी सीख याद आती है?

कुत्ता हर चलती गाड़ी के पीछे भागता है और भोंकता है; उससे पूछो की अगर वो गाड़ी मिल भी जाएगी तो क्या वो उसे चलाएगा? नही। ऐसे ही हम दूसरे लोगों पर comments करते हैं, पता नही इनका कहां से फटा पड़ रहा है? तुम्हे क्या वैसे करना है? नही तो फिर भौंक क्यूं रहे हो? 

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"ना किसी की निंदा करें, ना किसी की निंदा सुनें" इस पर गुरुजी ने क्या बताया है?

हम केवल अपने को बना सकते हैं, दूसरे को नही। दूसरे की बुराई दिख रही है, इसका मतलब बुराई खुद के अंदर है, अपना कोई स्वार्थ पूरा नहीं हुआ है। मेरे कान क्या पीकदान हैं जो मेरे कान में किसी की निंदा कोई डाल जाए। हमारे ही अंदर रस पड़े हैं किसी की निंदा सुनने के, तभी कोई बोलता है। जहां गंदगी पड़ी होती है, वहीं कोई कूड़ा डालता है, साफ जगह पर नहीं। अपने को ही साफ करते जाओ

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गुरुजी भक्तों की विशेषता बताते हैं। नीचे दिए भक्त की क्या विशेषता है जिससे हम सीख सकते हैं?

 

 यह सुदामा भक्त का चित्र है, वो कितनी गरीबी में थे पर खुश रहते थे और उन्होंने भगवान से कभी कुछ मांगा नहीं। भक्त की यह विशेषता है की वो कुछ मांगता नही है - परमात्मा ने उसको जिस हाल में रखा है उसमे खुश रहता है।

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गुरु के संग प्रेम लगाया, रहा न कुछ और बाकी हम तो भरपूर हुए पाके तेरा प्यार हो साकी

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नीचे दिए चित्र से गुरुजी के क्या सीख याद आती है?


Magnet के कण सधे हुए होते हैं और उसमे आकर्षण शक्ति होती है, all pins खुद ब खुद उसमे खिंचते हुए उससे चिपक जाते हैं और उनके भी कण सधने लगते हैं। इस वजह से उसमें भी इतना आकर्षण पैदा होता है कि वो और all pins ko खींच सकती है। ऐसा ही मैग्नेट है गुरु। गुरु ने अपने मन इन्द्रियों को साधा है, उनके अंदर सच, परमात्मा का आकर्षण है जो हमको खींचता हैं। इसी आकर्षण से हम सत्संग में खिंचते हैं। गुरु के साथ सच सुनते सुनते हमारी भी सोच, देखने का नजरिया सधता जाता है, आकर्षण शक्ति उभरती है जिससे और लोग भी हमसे खिंचते है और यह बातें सुनना पसंद करते हैं।

जिस तरह से magnet खुद कुछ नही करता, उसके होने मात्र से ही all pins खुद ब खुद खिंचती चली जाती हैं, इसी तरह से परमात्मा खुद कुछ नही करता, उसके होने भर से ही यह शरीर हिलता डुलता है,बोलता है, चलता है, सोचता है। पर यह शरीर क्या बोले, क्या देखे, क्या सोचे, यह समझ हमें गुरु के साथ बैठकर मिलती है। हम गलत काम करें और बोलें की ये तो परमात्मा की शक्ति से हुआ तो यह गलत होगा। गलत काम हमसे हमारी इच्छा कराती है।

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जेल में दो दोस्त गए, एक को अंधेरा दिखा, मच्छर दिखे, बदबू महसूस हुई और दूसरे को खिड़की दिखी, वहां से आती चांद तारों की रोशनी और ठंडी हवा। इस दृष्टांत से गुरुजी हमको क्या बताते हैं।

हमारा हर situation ko dekhne ka नजरिया कैसा है। उसी हालत में एक रो रहा है और एक खुश हो रहा है। हम।हर बात में से अच्छे ढूंढ कर निकाल सकते है, गुरु से हर चीज को देखनेका नजरिया सीख लें

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गुरुजी भक्तों की विशेषता बताते हैं। नीचे दिए भक्त की क्या विशेषता है जिससे हम सीख सकते हैं?

ये मीरा बाई का चित्र है। बहुत बड़े राजमहल की रानी थीं, पर सब गहने, आभूषण त्याग कर उनको तुलसी माला ही पसंद आई। भक्त वैभव या संपदा में नहीं खुश होता, उसको हरि गुण गाना ही अच्छा लगता है।

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भगत भगवन के संकट से डर जाया नहीं करते 

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इस चित्र को देखकर गुरुजी की कौनसी सीख याद आती है?

तरकश से कुछ तीर चल चुके हैं, कुछ हाथ में हैं। हम बहुत कर्म बना चुके हैं; उनका फल तो हमें मिलेगा ही, उनसे बच नहीं सकते, पर अब हम और कर्म ना बनाएं, यह हमारे हाथ में है। गुरु का साथ हमको जो भी सामने आता है उसकी तैयारी कराता है और हर बात में भलाई देखना सीखता है। अब चुप हो जाओ, शिकायत नही करो, सावधान रहो की किसी से कैसे बात करते हो, क्या भाव रखते हो, यह हमारे हाथ में है।

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ये शरीर संत है, इस का क्या मतलब है? दो उदाहरण देकर बताएं संक्षिप्त में बताएं।

इस शरीर की आवश्यकता बहुत कम है, इसको कुछ नही चाहिए। भारी कपड़े और गहने पहना दो पार्टी के लिए पर जैसे ही वापिस घर पहुंचते हैं, सबसे पहले सब उतारकर हल्के कपड़े पहनते है। जायदा गरिष्ट भोजन करा दो तो इसको हजम नही होता।

इस शरीर को क्या खिलाएं, क्या सुनवाएं, कहां बिठाएँ - सादा, सात्विक भोजन, किसी की निंदा, चुगली नही करें, इसको साध संगत के साथ बिठायें। रात को देर तक जगाना, लेट भोजन कराना, गलत संगत में बिठाना, यह सब संत का अपमान करना है। इसका misuse नही करें।

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गुरुजी भक्तों की विशेषता बताते हैं। नीचे दिए भक्त की क्या विशेषता है जिससे हम सीख सकते हैं?


भक्त कष्टों से नही घबराते। प्रह्लाद को उसके पिता ने खाई से गिराया, मतवाले हाथी से मरवाने की कोशिश करी, बहन होलिका की गोदी में बिठाकर जलाने की कोशिश करी, लेकिन वो घबराए नहीं, डरे नही, अपनी भक्ति नही छोड़ी। उनके मुख से कभी नही निकला की उन्हें कोई कष्ट पहुंचा। परमात्मा से बोला मेरे पिता का क्रोध शांत हो जाए। भक्त के मन में उससे उलटा चलने वाले के प्रति को दुर्भाव नही होता है।

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भक्तों की याद पर आता जरूर हूँ

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इस चित्र को देखकर गुरुजी की बताई कौनसी सीख याद आती है?

पिंजरा चाहे लोहे का हो चाहे सोने का पर है तो आखिर पिंजरा ही जो हमको कैद में रखता है, हम उन्मुक्त पक्षी की तरह उड़ तो नही सकते। हम सोचते हैं, अच्छे कर्म करके हम मुक्त हो जायेंगे, दान, पुण्य करें, पर उस कर्म को करके भी अहंकार रहता है, मैंने किया, जिससे हमको फिर जन्म लेना पड़ता है। यह भी कैद है। हम यह तो भूल ही जाते हैं की सब करने कराने वाली शक्ति परमात्मा की है, यह तन उसी ने रचा है वही चलाता है, ये बुद्धि उसी की दी है जिससे धन कमा पाते हैं। गुरुजी इसलिए कहते हैं की कुछ नही करो, पहले समझ खुल जाए तो फिर सब हो रहा है, मैं करने वाला नही। अच्छे कर्म करके भले सुख, वैभव मिल जायेंगे पर फिर भी गर्भ के दुख सहने पड़ेंगे। फिर राजा भी तो दुखिया,उसको भी चिंता होती है,मान, अपमान लगता है, और और की भूख रहती है, तो वो भी तो अपनी इच्छाओं और अहंकार की कैद में है।

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राम कृष्ण ने कहा "सेब तुम हो तो बहुत अच्छे पर मैं तुमको खाऊंगा नही", इस प्रकरण को बताकर गुरुजी हमको क्या सिखाते हैं?

जीवन में संयम का होना बहुत जरूरी है। मन कुछ खाने को करे पर उसको माना कर सको, मन से उल्टा चलो, इसी के अभ्यास से मन पर जीत होगी। 

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गुरुजी भक्तों की विशेषता बताते हैं। नीचे दिए भक्त की क्या विशेषता है जिससे हम सीख सकते हैं?

एक तरफ कृष्ण की यशस्वी सेना थी और एक तरफ अकेले कृष्ण। अर्जुन ने केवल कृष्ण को चुना। जैसे जैसे कृष्ण बताते गए अर्जुन वैसे करते गए, पहले अपनी सब शंका का समाधान लिया, फिर अपने को पूर्ण समर्पित कर दिया, जैसे आप चलाओ। कोई मन बुद्धि नही चलाई। हमारा भी चुनाव केवल गुरु हो, गुरु जैसा बताए वैसा करें, अपनी मन बुद्धि से नहीं बल्कि गुरु की समझ से चलें

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गुरु ऐसो जिया में समाये गया रे की में तन मन की सुद्बुध गंवा बैठी

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इस चित्र से गुरुजी की कौनसी सीख याद आती है?


ये चित्र निहाई और हथौड़े का है। हथौड़े से निहाई पर प्रहार होता है, हथौड़ा टूट जाता है पर निहाई वैसे की वैसे ही रहती है। प्रहार करने वाला हमेशा टूटता है, वो कमजोर होता है पर जो प्रहार को सहता है वो भीतर से मजबूत होता है, और कभी नही टूटता। हम सहनशक्ति रखें, मौन रहें, गुरु की बातों में मन रखेंगे, तो टूटेंगे नही

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लॉकर को खोलने के लिए बैंक की चाबी और अपनी चाबी दोनो चाहिए होती हैं, इसमें से एक भी न हो तो लॉकर नही खुलेगा। इस बात से गुरुजी हमको क्या बताते हैं? 

गुरु की किरपा के साथ हमको अपने पुरुषार्थ की भी जरूरत है, नही तो हमारा जीवन नही बनेगा। गुरु रोज हमको सिखाते हैं, कैसे बोलें, चलें, क्या देखें, अपने को सब तरफ से हटा कर सत्संग में लगाएं, पर इनको मानना और इनपर चलना तो हमको है, नही तो हमारे अंदर पड़े खजाने को नही पा पाएंगे

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गुरुजी भक्तों की विशेषता बताते हैं। इस चित्र में दिखाए भक्त की क्या विशेषता है जिससे हम सीख सकते हैं?

अपने मान का हनन करने वाला ही सच्चा भक्त होता है।

सीता मैया जब सिंदूर लगा रही थी, उन्होंने बताया की यह श्रीराम को पसंद है। तो उन्होंने पूरे शरीर पर सिंदूर मल लिया। जो चीज मेरे गुरु को पसंद है, मैं पूरा का पूरा वैसे हो जाऊं।

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क्या कहूँ कौनसी है दौलत है गुरु

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