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"Live in the World but not of the World" इस सूत्र को गुरुजी ने हमें बहुत उदाहरणों से समझाया है। कोई एक उदाहरण देकर बताएं इसका क्या अर्थ है?

नाव पानी में रहे पर पानी नाव में नहीं आए

कमल का फूल कीचड़ में है पर कीचड़ से न्यारा है

हलवा जब पूरी तरह से बन जाता है तो कड़ाई छोड़ देता है, बिल्कुल चिपका नहीं है

ऐसे ही हम दुनिया में रहते हुए भी दुनिया के बनकर नहीं रहेंगे तो खुश रहेंगे। दुनिया की बातें मेरे अंदर नहीं जाएं, मुझे असर नहीं करें, देखते हुए भी नहीं देखा जैसे मरी हुई बिल्ली की आंख। 

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हमारा आचरण कैसा हो जिससे हम न्यारे रह सकते हैं?  इससे संबंधित कोई दृष्टांत या प्रकरण भी सुनाएं।

अचाह रहकर - 

Non- Interference रखकर - तेरा की

सबके गुण देखकर - शहद की मक्खी 

हल्के होकर - गुरुनानक जी

नो जजमेंट 

सबको thankful होकर

कुछ ना बनकर - मैं मां, पत्नी, बेटी.... ये पदवियां छोड़कर

अपने को नींवा करके

सर्व के लिए प्यार रखकर हम सर्व के प्यारे और सबसे न्यारे होते हैं

किसी को मेरे शब्दों, कर्मों, या मन से हानि ना पहुंचे - रबीन्द्रनाथ टैगोर

Unconcerned disinterested रहकर

हमेशा प्रसन्नचित रहकर

मुझसे सबको सुख मिले


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कोई भजन की पंक्ति सुनाएं जो इसी भाव को परिपक्व करे "Live in the world but not of the world"

जिंदगी में सदा मुस्कुराते चलो फांसले कम करो दिल मिलाते चलो

कुछ लेना न देना मगन रहना 

जो जग में रहूं तो ऐसे रहूं जैसे जल में कमल का फूल खिले, मेरे गुण और दोष समर्पित हों करतार तुम्हारे हाथों में

दृष्टा बनो जगत के पर मुख से कुछ न कहना, सच्चाइयों के पथ पर आगे ही बढ़ते रहना, जीवन नया मिलेगा सतगुरु शरण में आके पूर्ण गुरु..

ओ सैलानी मुसाफिर करने आए हो सफर तेरी दूर है वो मंजिल तेरा दूर है नगर, यह दुनिया रैन बसेरा तुमने लगाया डेरा, जिस घर को कहते हो यह घर मेरा, लेकिन ये घर कुटुंब कबीला नहीं रहेगा तेरा

पता नहीं देह का उनको तो फिर क्या औरों से मतलब वो तो कूटस्थ निष्चल हैं अविद्या के हैं सब करतब, वो तो खुद आशिक वो खुद माशूक सदा भरपूर रहते हैं

तू सैलानी मैं सैलानी तू परदेसी मैं परदेसी अगम देश से आए हैं हम सैर कारण सुहावनी 

तमाशा तुझमें होता है तमाशे में क्यूं रोता है